खोटा-सिक्का
"माँ थोड़ा सा पानी पी लो नहीं तो तबियत और खराब हो जायेगी"- छोटे बेटे
राहुल ने कहा।
मन
अंदर से बुरी तरह रो रहा था। अपने छोटे बेटे राहुल को देख मैं आज खुद की नजरों में बहुत शर्मिंदा थी। एक-एक बात आज याद आ रही थी।
मैं
और मेरे पति विनय
के दो बेटे थे राहुल और विशु। बड़ा बेटा विशु बहुत मन्नतों के बाद हमारी शादी के
करीब ७ साल बाद पैदा हुआ था।विशु के जन्म के २ साल बाद ही छोटे बेटे राहुल का जन्म
हुआ था। विशु बचपन से ही लाडला था और पढ़ने में भी होशियार था।राहुल शुरू से ही
पढ़ने में औसत दर्जे का स्टूडेंट था। विशु की कोचिंग सेंटर की फीस भरने का आज अंतिम
दिन था। विनय ने किसी तरह पैसों का इंतजाम किया।
"रमा अभी इतने ही ही हैं जाकर विशु की फीस भर आना बाकी अगले महीने जमा कर
देंगे"- शाम को ऑफिस से आकर विनय ने मेरे हाथ पर 75 हजार
का चेक रखते हुए कहा।
डॉ शर्मा जी हमारे बहुत अच्छे
पारिवारिक मित्र थे। परिवार के सभी मसलों पर मेरे पति विनय शर्मा जी से हर तरह की
सलाह लेकर ही कोई निर्णय लेते थे। शर्मा जी बहुधा विनय
और मुझे दोनों को ही हमारे बड़े बेटे विशु पर पैसा खर्च करने को कहते कि
-"भाभी विशु पर पैसा लगाने में ही आपको लॉन्ग-टर्म फायदा है। राहुल तो
खोटा-सिक्का है उस पर तो आप पैसा और समय दोनों ही बर्बाद करेंगीं"।
विनय और मेरी पूरी कोशिश थी कि विशु कुछ बन जाए। शुरू से ही विशु को विनय और मैंने
अच्छे से अच्छे स्कूल ,कॉलेज व कोचिंग से ही पढ़ाई-लिखाई
करवाने की ही कोशिश की थी और हम इसमें सफल भी रहे। प्रसिद्द इंस्टिट्यूट से
M.B.A कर विशु आज विदेश में सीनियर मैनेजर के पद पर काम कर रहा
था।विदेश में विशु अपना बँगला ले सम्पन्न जिंदगी जी रहा था। विनय और मैंने कई बार
विशु के पास जाने के लिए कहा पर हर बार विशु समय न होने का बहाना बना हमारा उसके
पास जाना टाल देता था। हमारी जिंदगी की सारी उम्मीदें
विशु पर ही टिकीं थीं।
छोटे बेटे राहुल का पढ़ाई में मन नहीं
लगता था और उस पर मैंने और विनय ने कभी ज्यादा ध्यान
भी नहीं दिया था। राहुल किसी भी प्रकार की
मशीन को मिनटों में ठीक कर लेता था और उसका सपना था कि उसकी अपनी एक वर्कशॉप हो।बचपन से ही वो हर तरह की
मशीनों और कलपुर्जों में अपना टाइम पास करता था।
राहुल जब भी हमें अपनी कोई जरुरत बताता
था विनय और मैं विशु की पढाई का हवाला दे कर उसे विशु की पढ़ाई पर होने वाले सभी
खर्चों से और अपनी लिमिटिड आमदनी से बखूबी अवगत करा देते थे। राहुल चुपचाप वहाँ से
चला जाता था। राहुल बिना किसी शिकायत के घर-बाहर के
सभी कामों में विनय और मेरी खूब मदद करता था। राहुल
हमेशा अपने बड़े भाई विशु की उपलब्द्धी पर गर्व महसूस करता था।
"सुनो ! अबकी बार विशु का फोन आये
तो उसे अपनी और मेरी टिकिट भेजने को कहना। बहुत हो गया उसका। पूरे 5 साल हो गए हैं। कम से कम एक बार तो अपने माँ-बाप को वहां बुला ले। वहाँ जा
कर हमें बिल्कुल भूल ही गया। अपनी दुनिया में ही मस्त हो गया है "-मैंने विनय
से उदास होते हुए कहा।
"हाँ… हाँ क्यूँ नहीं। पर तुम इतनी बदगुमान क्यों
होती हो ?फोन आएगा तो मैं जरूर बात करूँगा.अबकी बार जरूर
चलेंगें। अच्छा …ये लो सुबह-सुबह गर्म-गर्म चाय पियो राहुल ने बड़े ही प्यार से
बनायी है"-विनय ने कहा।
तभी फोन की घंटी बजी। राहुल ने फोन उठाया।
"पापा विशु भैया का फोन है। आपसे बात करना चाहते हैं "-राहुल ने हम
दोनों की और देखते हुए कहा और कमरे से बाहर चला गया।
राहुल
से फोन लेकर विनय ने विशु का हाल-चाल पूछा और मुझसे बात करने को कहा।
विशु बहुत जल्दी में था और मुझसे बात न करके विशु ने विनय को सिर्फ
इत्तला दी कि उसने अपनी पसंद से विवाह कर
लिया है और परिवार व काम के कारण अगले कुछ सालों तक वह हम लोगों के पास घर नहीं आ
पायेगा। इतना कह कर विशु ने फोन रख दिया। ये सब सुन विनय के हाथ से फोन छूट कर
नीचे गिर गया। विनय और मैं एक-दूसरे का मुहँ ही तकते रह गए। हम दोनों का शरीर ठंडा
पड़ गया था। काफी दिन तक घर में ग़मगीन माहौल रहा। विनय और मैं सदमे में थे।
३-४
महीने तक घर में कोई एक-दूसरे से बात नहीं कर रहा था।
एक दिन शाम को "माँ -पापा लीजिये मुँह मीठा करो मेरी वर्कशॉप का कल महूर्त है"-
राहुल ने मिठाई मेरे और विनय के मुहँ में डालते हुए कहा
"वर्कशॉप ? ये कब हुआ और तुम्हारे पास इतने पैसे कहाँ
से आये "-विनय ने अचंभित होते हुए कहा।
"अरे ! वो पापा मुझे लोन मिल गया है अपना स्टार्टअप के लिए।अब आप देखना
कैसे मैं मेहनत कर अपना व आप दोनों का नाम रोशन करता
हूँ"-राहुल ने खुश हो कर कहा।
विनय और मैं अपने मन व
आँखों में अनेक सवाल लिए उसे देखते रह गए।
सुबह हम दोनों राहुल की
वर्कशॉप पर पहुँचे। बहुत बड़ी तो नहीं पर सभी कल-पुर्जों ,आधुनिक
मशीनों से सज्जित वर्कशॉप थी राहुल की।डॉ शर्मा जी समेत
राहुल और विशु के मित्र व शहर के कुछ जाने-माने लोग राहुल की वर्कशॉप के महूर्त
में आये हुए थे।राहुल ने मुझे व विनय को सब लोगों से मिलवाया। सभी राहुल के
व्यवहार व टैलेंट की तारीफ़ करते थकते न थे।विनय और मैंने नोट किया कि वर्कशॉप पर
बड़ा-बड़ा "रवि" लिखा था।
तभी डॉ शर्मा
जी ने राहुल का मजाक बनाते हुए कहा -"राहुल की जगह रवि लिख
दिया है मियाँ। नाम तो सही कर लो वर्कशॉप का"।
"र "से माँ व मेरा नाम और "वि" से पापा और विशु भैया का नाम
बनता है। इसलिए नाम में कोई गलती नहीं है अंकल जी"-राहुल ने आत्मविश्वास से
कहा।सभी राहुल के जवाब की दाद देने लगे और मुझे और विनय को बधाई देने लगे।
"माँ-पापा मिस्टर भाटिया जी से मिलिए। ये हैं बैंक के मैनेजर और इन्होंने ही मेरा लोन पास किया
है"-राहुल ने बैंक के मैनेजर मिस्टर भाटिया जी से मिलवाया।
"विनय जी राहुल आपका बहुत ही अक्लमंद और होशियार बच्चा है। काफी अच्छी परवरिश
की है आपने इसकी। इतना होनहार , सुलझा हुआ ,मेहनती और लायक लड़का है ये। आजकल के यंग लोगों में ये खूबियां ढूंढे से भी
नहीं मिलतीं। जिस तरह से इसने अपना प्रोजेक्ट बैंक के समक्ष रखा हम इसे मना कर ही नहीं पाए और स्टार्टअप योजना में राहुल के प्रोजेक्ट को प्रथम स्थान
मिला है। यह जरुरी नहीं कि आपका बच्चा ऊँची डिग्री लेकर ही आपको गर्वित करे। अपने
सपने पूरे कर के भी वह आपको वही सम्मान दिला सकता है और ये भी सच है कि अधिकतर खोटा-सिक्का ही समय पर काम आता है" -भाटिया जी ने हमारी तरफ कटाक्ष करते हुए कहा।
मैं और विनय अपनी सोच के कारण
राहुल के समक्ष खुद को बहुत ही छोटा महसूस कर रहे थे। राहुल की सफलता में हमारी कोई भूमिका नहीं थी।
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