मासूम
खुशियाँ ही खुशियाँ बिखरी थीं,
चारों ओर,
कलकलाहट से गूँज रहा था,
मेरा घर ।
जब गोद में मेरी डाला उसे ,
चूम लिया मैंने उसे,
और
और
नन्हे हाथों ने छुआ मुझे।
और... कहा कभी न छोड़ने को,
और... कहा कभी न छोड़ने को,
सीने से लगा लिया मैंने भी उसको ।
फिर...भी कुछ कम सा था।
विचारों का एक तूफ़ान सा था ,
रगों में...क्यूँ ,
खून जोर - जोर से दौड़ रहा था।
एक पल को...वो भी
रोया न था।
शायद उसे भी पता था,
कि