सजग
ग्लोबल वार्मिंग के विषय को लेकर सभी चिंतित हैं। हर देश अपने देशवासियों को जागरूक करने की मुहिम में जुटा है। अपने पुराने रहने-सहने के ढंग अब दुबारा लोगों में चर्चा का विषय बन रहे हैं। अच्छी बात यह है कि पर्यावरण को बचाने के लिए सभी इन तरीकों को अपना भी रहे हैं।
पहले समय में रसोई घरों में स्टील के बर्तनों का प्रयोग होता था। सभी एक साथ खाना खाते थे। इसलिए खाने को बार-बार गर्म नहीं करना पड़ता था।मौसम व वातावरण के अनुसार ही खाद्य पदार्थों का प्रयोग होता था। आज हम इन तरीकों का प्रयोग नहीं करते इसीलिए माक्रोवेव इत्यादि की जरुरत पड़ती है। प्लास्टिक में खाना गर्म करने से खाना दूषित हो जाता है। आज बच्चे प्लास्टिक की पानी की बोतल व लंच बॉक्स का प्रयोग करते हैं। जिसमें कई प्रकार के रासायनिक तत्व मौजूद होने कारण स्वास्थय के लिए हानिकारक होते हैं।
खरीदारी पहले भी होती थी और लोग सामान कागज़ या कपड़े से बने थैलों में लाते थे। हमें भी इन तरीकों को अपने व्यव्हार में लाना चाहिए। जो वस्तुएं रिसाइकल हो सकती हैं उनका अधिकतम प्रयोग करना चाहिए। प्लास्टिक या थर्माकोल के गिलासों के स्थान पर कुल्हड़ व मिटटी से बने बर्तनों का प्रयोग किया जा सकता है। पुराने समय में जगह -जगह पेड़ों के नीचे पानी की प्याऊ होती थीं ।आज परेशानी पानी की बोतलों से हो रही है।पानी का उचित व सही मात्रा में प्रयोग करें। पब्लिक ट्रांसपोर्ट का प्रयोग करें। गिफ्ट पेपर की बजाय अख़बार में भी गिफ्ट पैक कर के दिया जा सकता है। अपने चारों ओर अधिक से अधिक पौधे लगाएं। परिवार में किसी ख़ास दिन या त्यौहार पर एक-एक पेड़ अवश्य लगाएं। यह भी एक कटु सत्य ही है कि हमारी पहली सांस से लेकर अंतिम यात्रा तक पेड़ बिना उफ्फ किये अपना सब कुछ हमें देते हैं और हम निर्दयी मानव एक झटके में पेड़ काट अपना मतलब गांठ लेते हैं।
मानव जीवन में जितनी सुविधाएँ आती गयीं तो साथ में परेशानियों का जन्म भी निश्चित था। पर हम सजग होने के बजाय निश्चिन्त होकर इन सब सुविधाओं को भोगते रहे और पर्यावरण को नुकसान पहुँचता रहा।आज प्लास्टिक,फॉयल पेपर ,थर्माकोल,प्लास्टिक की थैली ,गिफ्ट पेपर आदि जी का जंजाल बन गए हैं। अब भी अगर हम कुछ बातों का ध्यान रखना शुरू करें और अपने परिवार व बच्चों को भी सजग करें तो इस दिशा में एक पहल कर सभी संयुक्त रूप से पर्यावरण के बचाव में योगदान दे सकते हैं।
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