जीवन में धैर्य की आवश्यकता है।
जल्दबाजी में कार्य
को पूर्ण हुआ मान लेना आखिरी पलों में सफलता
को विफलता में परिणत कर सकता है। बेशक
आप श्रेष्ठ होंगे, लेकिन श्रेष्ठता पर अंतिम
मुहर आपकी सफलता ही लगाती है, न कि
उस सफलता को पाने के लिए की गई मेहनत।
सफलता अंतिम प्रमाणपत्र है।
जीवन की उत्पत्ति के बाद जब मनुष्य के लिए
नीति आदि का निर्धारण होने लगा तो महाराज
मनु ने धैर्य को धर्म के दशलक्षणों में प्रधान स्थान
दिया।
इसमें सबसे पहले धतिृ आता है, जिसका अर्थ है धैर्य धारण करना। इसे दूसरे अर्थ में सहनशीलता के तौर पर समझना चाहिए। हालांकि दोनों भिन्न अवस्थाएं हैं, लेकिन इनमें बेहद निकटता है।
इसमें सबसे पहले धतिृ आता है, जिसका अर्थ है धैर्य धारण करना। इसे दूसरे अर्थ में सहनशीलता के तौर पर समझना चाहिए। हालांकि दोनों भिन्न अवस्थाएं हैं, लेकिन इनमें बेहद निकटता है।
कठिन परिस्थितियों में क्रोध और
खीझ को सह लेने की शक्ति धैर्य से ही आती है।
धैर्य रखने का अर्थ शांति के साथ कदम उठाना
और परिणाम की प्रतीक्षा करना है।इसकी आम
परिभाषा यह होगी खुद को ऐसे काम से रोकना
जो लक्ष्य तक पहुंचने में रुकावट बने या उस तक
पहुंचने में विलंब का कारण बने।
ऐसे में धैर्य एक प्रतिरोध है जो मन पर काबू
होने से प्राप्त होता है। जीवन में लक्ष्य तक पहुंचने के लिए यह आवश्यक है कि मानव
धैर्य के साथ सदाचार को अपने जीवनका अंग
बनाए और उन्नति का मार्ग प्रशस्त करे।
मनुष्य
को धैर्य वेदों से मिला वरदान है, जिसके महत्व
को जीवन में उतारना जरूरी है। कबीर दास भी
लिख गए हैं-
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय। माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय।