चिल...
कुछ दिनों पहले ही मेरे दादा पहली बार बहुत ही ख़ुशी से हमारे घर आये। शहर पहली बार आये थे। बड़ी-बड़ी इमारतें और शहर की चकाचौंध देखकर बहुत विस्मित थे पर साथ ही इतनी प्रगति देख खुश भी थे। सुबह से लेकर रात तक हर बात में वो सिर्फ एक ही बात बार-बार दोहराते रहते थे-"हमारे जमाने में ऐसा नहीं था।"
दादा जी कुछ बदलावों से सहमत थे पर कुछ बातें उन्हें अच्छी नहीं लगतीं थीं जैसे - घर का सारा काम कामवाली करती थी माँ क्यों नहीं? घर में टीवी पर कुछ भी चलता रहता था। बच्चे बाज़ार से खाना मंगा कर खाते थे। माँ सारा दिन मोबाईल पर चिपकी रहती थीं। A.C -पँखे यूं ही चलते रहते। सब के छोटे-छोटे काम भी नौकर करता था। फुल टाइम मेड लगी थी घर में फिर भी माँ सारा दिन कहती रहतीं थी कि -क्या करूँ टाइम ही नहीं मिलता। मेरे और मेरे छोटे भाई के आने-जाने का कोई निश्चित टाइम नहीं था। पापा भी अपनी मर्ज़ी से टाइम बे-टाइम आते-जाते थे।
खाने की टेबल पर हम सब बहुत ही कम एक साथ होते थे और जब होते तो दादा जी हमें समझाने की कोशिश करते थे कि -सब अच्छा है। तरक्की करना बहुत अच्छा है पर अपनी पारिवारिक जिम्मेवारियों को सभी सदस्यों को पूरा करते हुए अपने घर को घर की तरह रखना चाहिए न कि इसे सिर्फ सराय समझना चाहिए। अपने दुःख सुख सांझे करने चाहिए। वो माँ को समझाते थे कि -बहू बच्चे अब बड़े हो गए हैं उन्हें वक्त दिया करो। उनसे उनकी समस्याओं और सफलताओं के बारे में विमर्श किया करो।उनके आने-जाने पर निगाह रखा करो।जमाना बदल गया है। ये बात मैं समझता हूँ पर तुम्हें भी समझना होगा कि -आजकल जमाना बहुत खराब है। ऐसे ही दादा जी पापा को भी समझाते।
माँ-पापा की तरह हम भाई-बहन भी उन्हें अनसुना कर देते थे ।दादा जी की दकियानूसी बातें हमारे सर के ऊपर से ही निकल जातीं थीं। बहुत ही बुरी और बोरिंग लगती थीं उनकी ये सब बातें। मैं और माँ दादा जी को यही जवाब देते कि-सब की अपनी-अपनी लाइफ है। यहाँ शहर में ऐसे ही होता है और भाई हँसते हुए दादा जी को हमेशा यही कहता -"चिल दादा जी चिल "
एक दिन दोपहर का खाना खा कर मैं,माँ,पापा दादा जी को दरवाजा बंद करने को कह बाज़ार के लिए निकल गए।हमारे जाने के कुछ देर बाद ही दरवाजे पर घंटी बजी। दादा जी ने गेट खोला और मेरा 12 साल का छोटा भाई दनदनाता अपने कमरे में घुस गया। दादा जी लॉबी में बैठ उसके बाहर आने का इंतज़ार करने लगे।4-5 घंटे हो चुके थे। दादा जी ने धीरे से दरवाजा खोला। भाई कमरे में नीचे फर्श पर औंधे मूँह पड़ा था।
दादा जी ने हमें फोन कर जल्दी घर पहुँचने को कहा। दादा जी ने भाई के चेहरे पर पानी का छींटा दिया। होश आते ही भाई फफक कर दादा जी से लिपट गया। दादा जी ने प्यार से उसे गले लगाया और उसके रोने का कारण पूछा। तभी हम सब वापिस आ गए और भाई की हालत देख हमारे होश उड़ गए।
दादा जी ने भाई से पूछा -बेटे क्या हुआ है। बताओ हमें। माँ ने भाई को अपनी गोद में लिटाया और मैं और पापा घबराहट के मारे मरे जा रहे थे। भाई ने बताया कि कई महीनों से उसके दोस्त "सीक्रेट गेम " के नाम पर उसका शारीरिक शोषण कर रहे थे। सुनते ही हम सब के पाँव तले जमीन खिसक गयी।माँ और मैं भी रोने लगे। दादा जी ने हम सबको समझा बुझा कर चुप कराया।
हम सबको कमरे से बाहर भेज और भाई को प्यार से अपनी गोद में ले दादा जी ने भाई से कहा - बेटा जो हुआ सो हुआ। उसे भूल जाओ। हम सब तुम्हारे साथ हैं। बहादुरी से परिस्थिति का सामना करना और अपने दोस्तों को अच्छे से बताना कि अब से कुछ भी सीक्रेट नहीं होगा और तुम उनके किसी भी काम में उनके साथ नहीं हो। बेटा हम सब तुम से बहुत प्यार करते हैं और मुझे पूरा विशवास है कि तुम अपना आत्मविश्वास नहीं खोओगे।अपना पूरा ध्यान अपनी पढाई पर लगाओगे।अपनी हर परेशानी अपने माँ-पापा या बहन से शेयर करोगे।
थोड़ी देर बाद भाई के साथ कमरे से बाहर आ कर दादा जी ने माँ से कहा -बहू एक लार्ज पिज़्ज़ा आर्डर करो। आज मैं भी अपने पोते के साथ खाऊंगा। हम चारों सुबकते हुए दादा जी की ओर आश्चर्य से देख रहे थे। भाई को सहज देख माँ -पापा भी टेंशन फ्री दिखे। तभी दादा जी बोले -सब ठीक है। चिल...भाई चिल।
आज माँ-पापा व हम दोनों भाई-बहन को दादा जी की सभी दकियानूसी बातें समझ आ रही थीं जो पहले सर के ऊपर से निकल जातीं थीं।