Thursday, June 14, 2018


 "अस्तित्व  "

मेरे जन्म लेते ही मेरे लड़की होने का अहसास यह समाज बखूबी करा देता है और इसकी सजा भी समाज मुझे अपने तरीके से समय-समय पर खूब देता है। शारीरिक व मानसिक प्रताड़ना आदि सजाएं मेरे लिए तय की गयी हैं। इस सजा के लिए मेरी उम्र की सीमा भी तय नहीं है।
             हमारे यहाँ स्त्री की सभी रूपों में पूजा की जाती है। परन्तु यह पुरुष प्रधान समाज मुझे सिर्फअपनी वासना भरी दृष्टि से मेरा सिर्फ एक ही रूप देखता है फिर चाहे मैं दूधमुहीं बच्ची ही क्यूँ न हूँ।  
           जब ईश्वर ने इस सृष्टि की रचना की तो उसे पता नहीं था कि वो अपनी सबसे खूबसूरत कृति "स्त्री "की रक्षा के लिए जिस "पुरुष "में जान डाल रहा है वही उसका रक्षक बनने के बजाय भक्षक बन जाएगा। 
           मेरे जन्म लेने पर मेरे माता -पिता की जिंदगी रुक व बुझ सी जाती है।लेकिन उनके जीवन में उल्लास व रंग उनकी बेटी ही भरती है।मेरी जिंदगी को पिंजरे में कैद कर दिया जाता है।बुरी निगाहें,अश्लील कमेन्ट,पहनावे पर रोक-टोक,शिक्षा से वंचित होना ये सब मेरे अधिकार हैं जो मुझे जन्म लेते ही मिल जाते हैं।कई बार ऐसा लगता है कि जैसे मैं कोई फालतू की वस्तु हूँ जो इस समाज पर जबरदस्ती मढ़ दी गयी हूँ। जिसे बुरी तरह से रौंद कर जीने का हक़ भी छीन लिया जाता है। 
         विडम्बना ये कि मैं बेक़सूर रौंदकर या तो फ़ेंक दी जाती हूँ या मार दी जाती हूँ या फिर हिकारत की जिंदगी जीने को मजबूर की जाती हूँ। समाज के कितने ही थपेड़े खाने के  बाद भी मैं फिर से अपना अस्तित्व समेटती हूँ और फिर अपने पैरों पर खड़ी हो जाती हूँ यही बात समाज की बर्दाश्त से बाहर है।
        एक बीज से ही विशालकाय  बरगद का पेड़ जन्म लेता है। उसका पूर्ण अस्तित्व एक छोटे से बीज में निहित है। ठीक वैसे ही इस अभिमानी व दम्भी पुरुष का अस्तित्व भी "स्त्री "नामक बीज में ही निहित है।अगर बीज नष्ट होता है तो बरगद का अस्तित्व भी निश्चित रूप से गर्त में है।   
         ईश्वर द्वारा रचित अनगिनत पेड़ ,पौधे,जानवर,पक्षी,नदियाँ ,पहाड़ और भी न जाने कितनी खूबसूरत चीजें अपना अस्तित्व खो चुकी हैं या विलुप्त हो चुकी हैं तथा विलुप्त होने वाली जातियों में अगला स्थान 
अब "स्त्री " का ही है। अगर पुरुष को अपना साम्राज्य व अस्तित्व बचाना है तो उसे"स्त्री "नामक बीज को सहेजना होगा और मोहब्बत व इज्जत से सींचना होगा तथा खुले दिल से "स्त्री " के अस्तित्व को स्वीकारना होगा। 

                                 
 
   VDAR 
PRCHY 2018
  
 SSoni October 2018,pg-31
  
HH 5October18,pg-39