उत्पीड़न
जब ईश्वर ने महिला का सृजन किया तो उसने महिला को कोमलता के साथ-साथ एक ऐसी अदृश्य ताकत भी दी जिसके कारण वह पुरुष की निगाहों को बड़ी ही सरलता से पहचान जाती है तथा उसी के अनुरूप वह कई बार अपना बचाव समय पर कर लेती है। होश संभालते ही वह घर व बाहर न जाने कितनी ही निगाहों का सामना करती है। बेशर्म निगाहें परछाई की तरह हमेशा किसी न किसी रूप में उसके साथ ताउम्र चलती हैं। जिनसे वह पीछा तो नहीं छुड़ा पाती लेकिन खुद के स्वाभिमान व अपने परिवार की इज्जत को बचाने के लिए न जाने कितनी मानसिक यातना को सहन करती है। शारीरिक प्रताड़ना ही नहीं अपितु घूरना, पीछा करना, छूना, भद्दे कमेंट्स सुनना, फोन कॉल ,मैसेजिस, जबरदस्ती आदि एक महिला को प्रताड़ित करने की अनेक प्रकार की विधाएँ हैं। इस कारण कितनी ही महिलायें अपना स्वभाविक जीवन कभी जी ही नहीं पातीं। प्रायः महिला अपनी इन सभी परेशानियों का सामना अकेले करने का प्रयत्न करती है एवं कितनी ही बार वह टूट कर बिखर जाती है तथा कोई भी सहायता न मिलने के कारण कई बार अपना जीवन समाप्त कर लेती है।
कुछ दिनों से लम्बे समय से दबी हुई आवाजें "मी टू" अभियान के तहत सुनाई दे रही हैं। "मी टू " जैसे अभियान के माध्यम से निम्न व मध्यम वर्ग शायद ही अपनी व्यथा कहने की हिम्मत कर सके। आज भी कितने ही परिवार ऐसे हैं जहाँ परिवार की कई "मी टू" असंख्य रहस्य व न जाने कितना दुःख-दर्द पीढ़ी दर पीढ़ी खुद में समेटे हैं। अपने घर से लेकर जीवन के कितने पड़ावों पर महिलायें इस प्रकार प्रताड़ित होतीं हैं तथा जीवन भर इस घृणित एहसास के साथ जीती हैं। कहते हैं - कहने से दुःख कम हो जाता है या मन हल्का हो जाता है। लेकिन कई बार पीड़ित महिलाएं चाहे किसी भी वर्ग की हों निजी जीवन में घटित असंख्य घटनाओं को सामाजिक व पारिवारिक दवाब के कारण आवाज़ नहीं दे पातीं तथा जीवन भर अपराधी को सजा न देने के कारण छटपटाती रहतीं हैं और अगर हिम्मत कर वह आवाज़ उठातीं भी हैं तो अपने आत्मसम्मान को ठेस पहुँचने के सिवाय उनके हाथ कुछ नहीं लगता।
इसका दूसरा पहलू यह भी है कि आज प्रत्येक व्यक्ति कम समय में ऊंचाइयों पर पहुँचना चाहता है और इसी कारण वह न जाने कितने समझौते करता है।आज समाज में इज्जत भी उसी की है जिसके पास दौलत,शोहरत,चमक-दमक,ऐशो-आराम है। परन्तु इस प्रकार के जीवन के लिए अपने द्वारा चुने गए रास्तों का व्यक्ति को भलीभांति ज्ञान भी होता है।
लेकिन जो भी इस प्रकार की कड़वी सच्चाई का अनुभव करता है उसके लिए जीवन का हर पल एक सज़ा बन जाता है। मानसिक असंतुलन व अपराध बोध जैसी समस्याओं से ग्रसित होने के कारण उसका जिंदगी के प्रति नजरिया बदल जाता है व जीवन जीने का आनंद नष्ट हो जाता है। करता कोई और है और सजा कोई और भुगतता है।
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