स्वछंदता
किसी भी नियम में बदलाव सिर्फ ऊपरी सतह को देखकर ही कर देना सही नहीं। विवाह भारतीय समाज में दो लोगों व उनके परिवारों के परस्पर मिलन की एक पवित्र मान्यता है। विवाहोत्तर सम्बन्ध हमारे समाज में स्वीकार्य नहीं हैं। ऐसे संबंधों को व्यक्ति ताउम्र गोपनीय ही बना रहने देने की चेष्टा करता है। इस प्रकार के संबंधों में लिप्त पुरुष व स्त्री को हमारे समाज में सम्म्मान्नीय दृष्टि से नहीं देखा जाता। परन्तु अब नया नियम बन गया है कि अगर पति या पत्नी अपने लिए किसी और को पसंद करते हैं और एक दूसरे से प्रतिबद्धता में कोई कमी महसूस करते हैं तो वह कानूनी रूप से अलग हो सकते हैं और अब समाज में विवाह से बाहर बनाये गए सम्बन्ध भी मान्य होंगें।
हमारे समाज में महिलाओं की स्तिथि किसी से भी पोशीदा नहीं है। कोई भी स्त्री विवाह के पश्चात अपना व अपने बच्चों का संरक्षण तथा भविष्य अपने पति में ही देखती है। वैसे तो किसी और के कारण कोई भी समझदार महिला या पुरुष अपने वैवाहिक जीवन को दांव पर नहीं लगा सकता। इस प्रकार व्यक्ति अपने विवाह व विवाहोत्तर संबंधों दोनों को ही बनाये रखने की चेष्टा करता है जिसका उसके साथी पर मानसिक रूप से भयंकर प्रभाव पड़ता है एवं व्यक्ति अवसाद से ग्रसित हो जाता है। किसी भी स्त्री या पुरुष के लिए इस सच्चाई को जानते हुए जीना कि उसका साथी उसके प्रति नहीं अपितु किसी ओर के लिए प्रतिबद्ध है या किसी और के साथ समय बिताना पसंद करता है किसी खौफनाक मानसिक यातना से कम नहीं है तथा इस प्रकार के मामलों में ज्यादातर महिलायें ही इस दर्द को ताउम्र सहतीं हैं। कुछ मामलों में पुरुष भी अपनी पत्नी के किसी अन्य पुरुष से सम्बन्ध बर्दाश्त नहीं कर पाते जिसके फलस्वरूप पूरा परिवार तबाह हो जाता है। वैसे तो कोई भी महिला या पुरुष चाहे कितना भी शिक्षित या आर्थिक रूप से सुदृढ़ ही क्यों न हो अपने साथी से इस प्रकार का विश्वासघात बर्दाश्त नहीं कर सकता तथा अपने रिश्ते में अपने साथी से प्रतिबद्धता या कमिटमेंट की अपेक्षा करता है।
पति-पत्नी के रिश्ते में आयी नीरसता,साथी द्वारा की गयी अवहेलना,उत्पीड़न,आर्थिक तंगी व अकेलापन आदि किसी भी स्त्री या पुरुष को अन्य व्यक्ति की ओर आकर्षित करतें हैं तथा व्यक्ति अन्य व्यक्ति के सानिन्ध्य में शारीरिक व मानसिक रूप से सकूँ पाने की चेष्टा करता है। हमारे यहाँ आज अधिकतर विवाहों में पति-पत्नी सिर्फ स्वयं के माता-पिता बन जाने या यूँ कहिये कि अपने बच्चों के कारण ही प्रायः अपने बेजान रिश्ते को एक प्रकार से खींच रहे हैं। विवाह के बाद पति-पत्नी अपनी संतान के साथ अपना एक खूबसूरत परिवार बनाते हैं जिसमें किसी बाहरी व्यक्ति का कोई स्थान नहीं होता। लेकिन अब कोई भी पुरुष या स्त्री जबरदस्ती या समाज द्वारा बंधन में बांधे गए तथा न निभने वाले रिश्ते को अब और खींचना नहीं चाहता। दोनों ही स्वच्छंद होकर अपनी-अपनी जिंदगी खुलकर जीना चाहते हैं। अब अन्य महिला या पुरुष से सम्बन्ध शर्म की बात नहीं होगी। जिसे जहाँ ,जिसके साथ अच्छा लगेगा अपना जीवन व्यतीत करेगा। यानी जो अभी तक एक झीने से परदे के पीछे हो रहा था अब खुल कर होगा।
बाहर के देशों में अकेले रहने वाली स्त्रियों को सरकार द्वारा संरक्षण दिया जाता है। उन्हें उनकी व उनके बच्चों की मूलभूत सुविधाएं सरकार द्वारा प्रदान की जाती हैं। हमारे समाज में अगर कोई भी स्त्री अपने विवाहोत्तर संबंधों के कारण अपने पति के द्वारा अलैदा कर दी जाती है तो उसे समाज में अपनी सुरक्षा व आर्थिक जरूरतों को पूरा करने का कोई रास्ता दिखाई नहीं देता। समाज में मध्यम व निम्न वर्ग की बात करें तो आज भी न जाने कितने परिवारों में बेटियों के विवाह के पश्चात उनके माता-पिता या मायके के लोगों द्वारा बेटियों से सिर्फ एक औपचारिक सम्बन्ध ही रखा जाता है। विवाह के पश्चात परिवार वाले एक प्रकार से अपना पल्ला ही झाड़ लेते हैं। पति द्वारा समाप्त किये गए रिश्ते के बाद महिलायें खुद को कहाँ व कैसे संरक्षित करेंगीं इसी डर से वह अपने पति के इन संबंधों को स्वीकार कर लेती हैं। इस प्रकार की स्थिति सभी वर्गों की महिलाओं में देखने व सुनने को मिलती है। मध्यम व निम्न वर्ग अशिक्षा व आर्थिक रूप से कमजोर होने कारण अपने साथी द्वारा दी गयी इस यातना को सहता है। उच्च वर्ग की भी अपनी ही समस्याएं हैं पर अछूता यह भी नहीं है।
लेकिन एक कड़वा सत्य यह है कि कमजोर पक्ष न चाहते हुए भी इस मानसिक प्रताड़ना को सहन करेगा। परिवार बिखर जायेंगें। सबसे ज्यादा प्रभाव बच्चों पर होगा। सबसे अहम विवाह व परिवार की मान्यताएं जो हमारे देश को पूरी दुनिया से अलग बनातीं हैं जिसके कारण भारतीय परिवारों में एकता व पूर्वजों की शिक्षा व विरासत को पीढ़ी दर पीढ़ी आगे ले जाया जाता है सब अपना अस्तित्व खोने लगेंगीं। चरित्र ,प्रतिबद्धता ,वफादारी व सहनशीलता जैसे शब्द विलोप हो जायेंगें।परिस्थिति कोई भी रहे शोषण महिलाओं का ही होगा। कहते हैं न जो अपनों का न हो सका वो दूसरों का क्या होगा।
हर व्यक्ति को चाहे वह स्त्री हो या पुरुष अब अपने विवेक का प्रयोग कर अपनी स्वछंदता,विवाह ,परिवार ,चरित्र ,अपना व अपने साथी का मान-सम्मान,समाज के प्रति दायित्व,संस्कार तथा नैतिक मूल्यों में से चुनाव कर खुद को अपनी ही नजरों में स्थान देना होगा तथा अपनी जवाबदेही स्वयं के लिए ही सुनिश्चित करनी होगी।
Srbi २०/०१/२०१९/ |
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